'भारत बंद' : आखिर क्या ये पूरा माजरा और 'हंगामा है क्यों बरपा'...
देशभर में आज 'भारत बंद' के आह्वान को लेकर बाजार बंद है। इस दौरान बंद समर्थक लोग रैलियां निकालकर अपना विरोध दर्शा रहे हैं। वहीं, रैली के रास्ते से गुजरने वाले वाहन चालकों के साथ जबरदस्ती किए जाने की भी खबरें हैं। न सिर्फ जबरदस्ती, बल्कि कई रेलों को बाधित करने के साथ साथ कुछ स्थानों पर तोड़फोड़ और वाहनों में आगजनी की भी खबरें आ रही है।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि 'भारत बंद' के नाम पर किए जा रहे इस प्रदर्शन में आखिर इतना हंगामा क्यों बरप रहा है। दरअसल, भारत बंद का आह्वान हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट के संबंध में दिए गए फैसले के विरोध में किया गया है। वहीं इस बंद का दलित समाज समर्थन कर रहा है। ऐसे में बात एक बार फिर से उसी 'आरक्षण' पर आ जाती है।
असल में आज के समय में आरक्षण के समूचे मायने ही पूरी तरह से बदल चुके हैं। जबकि आरक्षण का जन्म दलित समाज के लोगों को समाज में मान-सम्मान दिलाने की दिशा में हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे राजनेताओं ने इसका स्वरूप ही बदल दिया, नतीजतन अब इसका एकमात्र उद्देश्य महज सरकारी नौकरी हासिल करना ही हो गया है। ऐसे में अब इसका कोई उपाय भी काफी मुश्किल हो चला है।
अब इस आरक्षण का किया भी क्या जाए। लाजमी सी बात है, जिन लोगों ने इस आरक्षण के स्वरूप से छेड़छाड़ कर इसके उद्देश्य को ही बदल डाला, तो इसका खामियाजा किसी न किसी न रूप में उन्हें भुगतना ही होगा ना.....।
इस बात पर है हंगामा :
चलिए, अब ये जानते हैं कि आखिर ये पूरा माजरा है क्या और ये विरोध आखिर किस बात पर हो रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की ओर से एससी/एसटी एक्ट के संबंध में सुनाए गए एक फैसले से दलित समुदाय में रोष है। इस समुदाय के लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने भी कोई रीव्यू पटीशन दाखिल नहीं की, जिससे केंद्र सरकार का दलित विरोधी रवैया स्पष्ट होता है। इससे दलितों पर होने वाले अत्याचारों में वृद्धि होगी व उन्हें मिलने वाले इंसाफ की उम्मीद और मद्धम हो जाएगी। इसी रोष में देशभर में दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया है।
आखिर क्या है ये एक्ट :
अब ये भी जान लेते हैं कि जिस एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए हैं, उस एक्ट में आखिर है क्या। दरअसल, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 को 11 सितम्बर, 1989 को संसद में पारित किया गया था। 30 जनवरी, 1990 को इस कानून को जम्मू-कश्मीर छोड़ पूरे देश में लागू किया गया। इस एक्ट के अनुसार, अगर कोई भी गैर एससी-एसटी व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को किसी भी तरह से प्रताड़ित करता है तो उस पर कार्रवाई होगी। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत आरोप लगने वाले व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार किया जाएगा। जुर्म साबित होने पर आरोपी को एससी-एसटी एक्ट के अलावा आईपीसी की धारा के तहत भी सजा मिलती है। इसके अलावा एससी-एसटी एक्ट के तहत उसे अलग से 6 महीने से लेकर उम्रकैद तक की सजा के साथ जुर्माने की व्यवस्था भी है। और अगर यही अपराध किसी सरकारी अधिकारी ने किया है, तो आईपीसी के अलावा उसे इस कानून के तहत 6 महीने से लेकर एक साल की सजा होती है।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि 'भारत बंद' के नाम पर किए जा रहे इस प्रदर्शन में आखिर इतना हंगामा क्यों बरप रहा है। दरअसल, भारत बंद का आह्वान हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट के संबंध में दिए गए फैसले के विरोध में किया गया है। वहीं इस बंद का दलित समाज समर्थन कर रहा है। ऐसे में बात एक बार फिर से उसी 'आरक्षण' पर आ जाती है।
असल में आज के समय में आरक्षण के समूचे मायने ही पूरी तरह से बदल चुके हैं। जबकि आरक्षण का जन्म दलित समाज के लोगों को समाज में मान-सम्मान दिलाने की दिशा में हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे राजनेताओं ने इसका स्वरूप ही बदल दिया, नतीजतन अब इसका एकमात्र उद्देश्य महज सरकारी नौकरी हासिल करना ही हो गया है। ऐसे में अब इसका कोई उपाय भी काफी मुश्किल हो चला है।
अब इस आरक्षण का किया भी क्या जाए। लाजमी सी बात है, जिन लोगों ने इस आरक्षण के स्वरूप से छेड़छाड़ कर इसके उद्देश्य को ही बदल डाला, तो इसका खामियाजा किसी न किसी न रूप में उन्हें भुगतना ही होगा ना.....।
इस बात पर है हंगामा :
चलिए, अब ये जानते हैं कि आखिर ये पूरा माजरा है क्या और ये विरोध आखिर किस बात पर हो रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की ओर से एससी/एसटी एक्ट के संबंध में सुनाए गए एक फैसले से दलित समुदाय में रोष है। इस समुदाय के लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने भी कोई रीव्यू पटीशन दाखिल नहीं की, जिससे केंद्र सरकार का दलित विरोधी रवैया स्पष्ट होता है। इससे दलितों पर होने वाले अत्याचारों में वृद्धि होगी व उन्हें मिलने वाले इंसाफ की उम्मीद और मद्धम हो जाएगी। इसी रोष में देशभर में दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया है।
आखिर क्या है ये एक्ट :
अब ये भी जान लेते हैं कि जिस एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए हैं, उस एक्ट में आखिर है क्या। दरअसल, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 को 11 सितम्बर, 1989 को संसद में पारित किया गया था। 30 जनवरी, 1990 को इस कानून को जम्मू-कश्मीर छोड़ पूरे देश में लागू किया गया। इस एक्ट के अनुसार, अगर कोई भी गैर एससी-एसटी व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को किसी भी तरह से प्रताड़ित करता है तो उस पर कार्रवाई होगी। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत आरोप लगने वाले व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार किया जाएगा। जुर्म साबित होने पर आरोपी को एससी-एसटी एक्ट के अलावा आईपीसी की धारा के तहत भी सजा मिलती है। इसके अलावा एससी-एसटी एक्ट के तहत उसे अलग से 6 महीने से लेकर उम्रकैद तक की सजा के साथ जुर्माने की व्यवस्था भी है। और अगर यही अपराध किसी सरकारी अधिकारी ने किया है, तो आईपीसी के अलावा उसे इस कानून के तहत 6 महीने से लेकर एक साल की सजा होती है।